कई दशक पहले
सुना है कुछ लोग आये थे
सात समंदर पार से
फिर यही रहे दशको तक
फिर चले गए..
अलविदा कहके.
और छोड़ गए
अपनी औलादों की
अय्याशियो को
जो आज भी उन्हें जिन्दा रखती हैं
हर पल हमारी घाव को
कुरेदने क लिए..
और उनकी औलादों
की अय्याश नजरो को
जो आज भी जीने नहीं देती
हमारी खुशियों को
झपटने को तैयार बैठी रहती हैं
हर घडी
हमारी थाल में पड़ी रोटी को
आज तक
समझ ही नहीं पाया की
अपनी थाल की रोटी बचाऊ
या उन्हें मार भगाने को दौडू
...............
सुना है दिल्ली के
गोल गुम्बद के बारे में
जो कुछ बोलती है मेरे
थाल की रोटी के बारे में
हर साल ..
गू गू गू करते हुए
येह भी सुना है
के मेरी एक थाल के
एक रोटी की कीमत पे
वहा पूरे एक दिन का चटकारा
भोजन मिला करता है ..
उस गोल गुम्बद में
और
मेरे जैसे कई एक रोटी खाने वाले
रोज एक नज़र चाहते है उस
अय्याश खाने की ...
सुना कुछ लोग आये थे
दशको पहले
वही छोड़ गए
अपनी विरासत में
इस अय्याश्खाने को..
नीर (नृपेन्द्र कुमार तिवारी )