Wednesday, August 11, 2010

main aanjaan nahi

मैं अनजान नहीं
इस शहर में
न ही ये शहर अनजान है
मुझसे
घूमता हूँ अकेला
खोजता
अपनी मंजिल
गम की धुंध में दिखती
मेरी मंजिल
खुबसूरत
ठीक शहर क बीचोबीच
सफ़ेद मटमैले पथ्थरो
से सजी
छोटा  कब्रिस्तान  
सही जगह
अपनी मंजिल पे
कहता तो रहा
मैं अनजान नहीं
और न ही
ये शहर अनजान है मुझसे

1 comment:

  1. itni km umar me itna dard hik nhi..manjil jivan hota hai dost,mot to koi manjil nhi,gam ke dhundh me khusiya talasho...ek hnsi,ek muskraht.

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